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गंगाजल आखिर क्यों नहीं होता कभी भी खराब

दोस्तो मैं हूं आपका दोस्त योगी योगेन्द्र जैसा की आप सब जानते हैं कि गंगोत्री से निकलकर कुछ राज्यों में बहने वाली गंगा नदी के पानी को गंगाजल ही कहा जाता है। वैसे यह पानी भारतवासियों लिए अमृत के समान माना गया है। हरिद्वार की यात्रा करने वाला हर व्यक्ति कम से कम एक लीटर गंगाजल लेकर तो आता ही है। प्रत्येक पूजन में गंगाजल का उपयोग किया जाता है। कभी आपने सोचा है कि किसी भी पानी में कुछ दिन बाद ही कीड़े पड जाते हैं या दुर्गन्ध आने लग जाती है। लेकिन गंगाजल में न तो कीडे पडते हैं न ही बदबू आती है। यह हमेशा पवित्र ही रहता है। आज मैं आपको बताऊंगा कि विज्ञान आपको इस बारे में क्या कहता है।



धर्म इस बारे में क्या कहता है
गंगोत्री से निकलने वाली गंगा नदी को हिंदु धर्म के अनुसार सबसे अधिक पवित्र माना जाता है। इसीलिए इस पानी को पूजा पाठ में इस्तेमाल किया जाता है। कहते हैं कि गंगा पहले आकाश में बहा करती थी। और भागीरथजी इसे जमीन पर लाए। और अब यह गौमुख से निकल कर देव प्रयाग में अलखनंदा से मिलती है। धार्मिक प्रभाव होने के कारण गंगाजल को अमृत के समान माना जाता है।
क्या हैं वैज्ञानिक कारण
गौमुख से निकली गंगा नदी अलखनंदा तक आते आते कुछ चटटानों से टकराकर आती है। जिस से इस पानी में ऐसी क्षमता पैदा हो जाती है जो इसका कभी भी बदबूदार नहीं होने देती। वैसे अगर जैविक संरचना की बात की जाए तो वो हर नदी की होती है। कुछ विशेष तरह के तत्व घुल जाने के बाद कई तरह के बैक्टीरिया को इसमें पनपने नहीं देते। आपने सुना भी होगा विषाणु दो तरह के होते हैं अच्छे और बुरे। तो बुरे विषाणु पानी को सड़ा देते हैं और अच्छे विषाणु पानी को नहीं सड़ाते हैं। गंगा पर शोध करने के बाद कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इस नदी में अच्छे विषाणु होते हैं जो इसमें कोई भी प्रकार के कीड़ों को या किटाणुओ को पैदा ही नहीं होने देते। और यह पानी काफी दिनों तक खराब नहीं होता। लंबे जंगलों से निकलने के कारण कई प्रकार की जडी बूटियों से भी यह प्रभावित हो जाता है।
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