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नयी खोज हो गई अब गोमूत्र से बन सकेगी बिजली

नमस्कार मैं हूँ आपका दोस्त योगी योगेन्द्र जैसा की आप जानते हैं कि रोटी कपड़ा मकान के बाद बिजली भी हमारी मूल आवश्यकता की तरह है | अगर एक मिनट के लिए भी बिजली चली जाए तो जीना मुश्किल हो जाता है | तो आप सोचो जब आज से कई सालों पहले बिजली नहीं थी तो लोग कैसे रहते होंगे लेकिन आज हम बिजली के इतने आदि हो चुके हैं कि इसके बिना रह नहीं सकते सब जानते हैँ | कि बिजली पानी से बनती है हालांकि अभी कुछ ऐसे शोध देखने को मिले जिन्होंने बताया कि बिजली कचरे से बन सकती है | और वर्तमान में पानी के अलावा सूरज की किरण से भी बिजली बनाई जा रही है | लेकिन क्यास आप जानते हैं कि भविष्य में गोमूत्र से भी बिजली बनाई जा सकेगी आज मैं आपको इसी बारे में बताऊंगा |

देसी गाय की होगी जरूरत
बिजली बनाने के लिए जिस गोमूत्र का हमें इस्तेमाल करना होगा उसकी पहली शर्त तो यही है कि गाय देसी होनी चाहिए | देसी गाय पीने के लिए दूध तो देती ही है लेकिन इसके गोमूत्र की मदद से हम घर में रोशनी भी कर सकते हैं | बिजली से चार्ज करने की बजाय गोमूत्र बदलने से ही इसे लालटेन में लगी 12 वोल्ट तक की बैटरी एक बार में फुल चार्ज हो जाएगी और लाल टेन जलने लगेगा | शहरवासियों को यह बात भले ही अजीब लगे लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए यह बेहद ही उपयोगी है और ऐसे लालटेन ओर बैटरी का अविष्कार हुआ है |
किसने किया इजाद यह अनोखा अविष्कार
दोस्तों यहां मैं आपको बता दूं कि कामधेनू पंच गव्य एवं अनुसंधान संस्थान अंजारों के निदेशक डॉ पीएल चौधरी ने इस तरह की बैटरी और लालटेन को इजाद किया है | अगर इसकी गुणवत्ता की बात की जाए तो नेश्नल इंस्टीटयूट ऑफ रायपुर ने भी इसकी बैटरी की गुणवत्ता पर मोहर लगा दी है | उन्होंने बताया है कि इस बैटरी में 500 ग्राम गोमूत्र का इस्तेमाल कर 400 घंटे तक तीन वाट की एलईडी जितनी रोशनी प्राप्त की जा सकती है |
कहां प्रदर्शित किया जा चुका है यह लालटेन
बैटरी बनाने वाले चौधरी साहब ने इस मॉडल को प्रदेश के मुख्यमंत्री के सामने भी प्रदर्शित किया तो उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए प्रदेश पंचगव्य संस्थान के लिए इसे बहुत बड़ी उपलब्धि बताया है | बनाने वाले ने बताया कि लालटेन में बैटरी के भीतर पहले जो एसिड डाला जाता था उसकी जगह गौमूत्र डाला है | और उसमें किसी भी कैमिकल को मिलाया गया है न ही इसमें किसी तरह का बदलाव ही किया गया है | लेकिन इसकी मुख्य शर्त यही है कि यह देसी गाय के मूत्र से ही चलेगी और इस बैटरी को किसी पुरानी मोटरसाइकिल से निकाला गया है | लालटेन में जब भी बल्ब की रोशनी कम होने लगती है तो गोमूत्र केा बदल दिया जाता है |
पेटेंट कराने के बारे में क्या कहते हैं चौधरी
इसके बारे में वो कहते हैं कि इस प्रयोग को वो पेटेंट कराकर अनुसंधान को आगे भी जारी रखेंगे और इसके लिए वे स्वयं के स्तर पर लगातार अनुसंधान भी कर रहे हैं | एनआईटी रायपुर के कुछ युवा वैज्ञानिकों को पर्यावरण मित्र गैर परंपरागत ऊर्जा का स्रोत बताते हुए इसे ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बहुत उपयोगी बताते हैं | डॉ पीएल यह भी कहते हैं कि बैटरी वाला यह लालटेन बिजली चलेजाने के बाद भी इमरजेंसी लाइट की तरह काम कर सकता है |
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