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दिल की गहराइयों में उतर जाएगी ये कविता

गुडहल के फूल सी सुबह तुम आज भी मेरी यादों में बसी हो 
जैसे फूल पे ठहरी कोई शबनम की नमी हो 
जैसे कोई सोनजुही वर्षों से खिली हो
जैसे मैं फूल और तुम मुझमे खुशबू सी बसी हो
सोचता हूँ क्यूँ मैं ज़माने की मार सह नहीं पाया 
क्यों खामोशी तुम मेरी समझ ना सकी क्यों होठों से मैं कुछ कह नहीं पाया |

तुम उपवन थी मैं वीरान था तुम्हारी खामोशी में छिपी हाँ से अनजान था
तुम मिली तो जाना धडकनों का सबब क्या है
एक उम्र तक दिल की धडकनों से अनजान था
खिलते फूलों में तुम्हारी मुस्कान पाता हूँ
और कभी अपने ही घर में खुद को अनजान पाता हूँ
अमलताश के पत्तों से तुम्हारी बात करता हूँ
जब कभी दिल की बगिया को वीरान पाता हूँ
रात को ख्वाबों में आकर अक्सर कुछ कहती हो
तुम मेरे अन्दर निर्मल गंगा सी बहती हो
सोचता हूँ क्यों मैं तुम्हारे साथ बह नहीं पाया
क्यों खामोशी तुम मेरी समझ ना सकी क्यों होठों से मैं कुछ कह नहीं पाया |
तुम्हारी यादों में शहद सी मिठास है 
तू दूर ही सही पर मेरे आस पास है 
तुम्हे भुला देना प्रेम का अपमान होगा 
जो सबसे खास है मेरे लिए तू वह अहसास है 
अमलताश की सुखी पत्तियों पर आज भी तुम्हारी छुअन बाकी है 
इस जन्म की दूरियां तुम्हे मुझसे छीन नहीं सकती
अभी तो कई जन्मो का मिलन बाकी है
सोचता हूँ इस जन्म क्यों हमारा मिलन होकर रह नहीं पाया
क्यों खामोशी तुम मेरी समझ न सकी क्यों होठों से मैं कुछ कह नहीं पाया |


आज भी जब तुम्हारे गुडहल से लाल होठ हिलते होंगे
कितने ही मिश्री के दाने तुम्हारे शब्दों में घुलते होंगे
तुम्हारा भी मिलन को मन करता तो होगा
जब कंही अमलताश के फूल खिलते होंगे
तुम्हारी वो सेफ्टी पिन आज भी करीने से सजा रखी है
कुछ मोहक सी तस्वीर तुम्हारी सीने से लगा रखी है 
यूँ तो मेरी जिंदगी एक खुली किताब की भांति है 
बस एक तेरी ही कहानी दुनिया से छुपा रखी है 
सोचता हूँ क्यों वो किस्सा और रह नहीं पाया 
क्यों खामोशी तुम मेरी समझ ना सकी क्यों होठों से मैं कुछ कह नहीं पाया |

दोस्तों ये कविता मेरे छोटे भाई युवा रचनाकार देव ने लिखी है अगर आपको अच्छी लगी हो तो इसे लाइक और शेयर कीजियेगा इसी तरह की पोस्ट पढ़ते रहने के लिए और हमसे जुड़ने के लिए मुझे फॉलो करे धन्यवाद् | 


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